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लेखनी कहानी -06-Apr-2023 अभिशाप बना वरदान


भाग 1

द्यूत में पराजित होने के पश्चात पाण्डवों को 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास में रहना था । द्रोपदी के भरी सभा में अपमानित करने की टीस प्रत्येक पाण्डव के मन को साल रही थी । दुर्योधन की हठधर्मिता और षडयंत्रों की प्रवृत्ति को दृष्टिगत रखते हुए यह निश्चित लग रहा था कि कौरव उन्हें आसानी से उनका राज्य वापिस देने वाले नहीं हैं । युद्ध ही एकमात्र विकल्प है जिससे अपना खोया हुआ राज्य पुन: मिल सकता है, ऐसा युधिष्ठिर भी मानने लगे थे । युद्ध की स्थिति में अपनी विजय सुनिश्चित करने के लिए "दिव्य अस्त्रों" की आवश्यकता थी जो इंद्र लोक से ही प्राप्त हो सकते थे । इसलिए अर्जुन को दिव्य अस्त्र लेने के लिए तपस्या करने और इंद्र लोक की सैर करने की अनुमति युधिष्ठिर ने दे दी थी । अर्जुन अपने यथेष्ट की सिद्धि के लिए तपस्या करने चले गये । कठोर तपस्या करने से उसने अनेक दिव्य अस्त्र प्राप्त कर लिये । इसके पश्चात वे अपने पिता इंद्र के पास आशीर्वाद और दिव्य अस्त्र लेने के लिए स्वर्ग लोक में पहुंचे ।

 स्वर्ग लोक में इंद्र ने अर्जुन का इतना भव्य स्वागत किया जिसे अर्जुन कभी भुला नहीं सकता था । कल्पनातीत स्वागत हुआ था उसका । इंद्र लोक की प्रत्येक वस्तु, देव, गंधर्व, मनीषी, अप्सराऐं सब अद्भुत थे , अवर्णनीय थे । उन्हें देखकर अर्जुन मंत्रमुग्ध हो गये । 56 प्रकार के भोजन न केवल स्वादिष्ट थे अपितु अकल्पनीय थे । अर्जुन को ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किसी ऐसे लोक में आ गया है जो मनुष्यों के लिए कल्पना से भी बाहर का है । वह आनंद अतिरेक में निमग्न हो गया । 

अर्जुन के स्वागत में इंद्र ने एक विशेष सभा बुलाई । इस सभा में समस्त देवता , ॠषि, गंधर्व आदि सब स्वर्ग लोक वासी आये । इंद्र ने अर्जुन को अपने ही आसन पर अपने पास बैठाकर अर्जुन को विशिष्ट सम्मान प्रदान किया । विशाल नेत्र, उन्नत ललाट , सिंह जैसी चाल , गजराज जैसी मांसल और बलिष्ठ भुजाओं वाले अर्जुन , जिनकी बांहों की मछलियों ने सुन्दरियों के मन में भूचाल ला दिया था , बलिष्ठ और चौड़े वक्षस्थल ने अप्सराओं के हृदय रूपी सागर में मंदराचल रूपी पर्वत की तरह मंथन कर दिया था । उसकी मनमोहक मुस्कान उन पर शेषनाग की तरह कहर ढा रही थी । ऐसे नर श्रेष्ठ अर्जुन को प्रसन्न करने के लिए इंद्र ने सभी प्रसिद्ध अप्सराओं जैसे घृताची, तिलोत्तमा, रंभा, मेनका, उर्वशी और अन्य अप्सराओं  को बुलवाकर नृत्य संगीत का कार्यक्रम आयोजित करवा दिया था । वे सब अप्सराऐं विशाल , पुष्ट और सुडौल उरोजों को भली भांति सुसज्जित कर, बड़े बड़े नितम्बों को मटकाते हुए आने लगी । इंद्र लोक में वस्त्र पहनना आवश्यक नहीं है तथापि इन अप्सराओं ने एक बहुत ही महीन सा वस्त्र पहन रखा था जिसमें से उनका संपूर्ण शरीर सौष्ठव दर्शनीय था । इस कमनीय बदन से इन अप्सराओं ने न जाने कितने ऋषि मुनियों की तपस्या भंग कर दी थी । उनके तन की मधुर सुगंध अच्छे अच्छे तपस्वियों के शील को भंग करने की क्षमता रखती थी । कोई मनुष्य कितना ही संयमी क्यों न हो, उसके मन में भी कामावेग प्रवाहित करने में प्रत्येक अप्सरा सक्षम थी । और अगर ये समस्त अप्सरा एक साथ मिलकर अपने हाव भाव और शरीर की भंगिमाओं से ऐसा उद्दाम नृत्य प्रस्तुत करें जिनमें उन्नत स्तन अपने संपूर्ण वेग से इधर उधर निर्विघ्न डोलायमान हों , नितम्ब अपनी संपूर्ण कलाओं के प्रदर्शन में निमग्न हों , जघन प्रदेश सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में प्रयत्न शील हो, मदमाते नयन यत्र तत्र सर्वत्र सुरा की अगाध वर्षा करने में मस्त हों तो आखिर किसकी मजाल है जो इन सैकड़ों 'रतियों' की कामचेष्टाओं से बच सके ?

अर्जुन का ध्यान सहसा उर्वशी के अनावृत पुष्ट उभारों और नयनाभिराम नितम्बों की लय ताल पर चला गया । उर्वशी ने इसे कनखियों से देख लिया था । अर्जुन का मन अपनी ओर जानकर उर्वशी अपने रूप पर गर्व करने लगी । उसके चेहरे पर एक स्मित मुस्कान स्थिर हो गई । वह अब और जोर से अपने अंगों का संचालन करने लगी । केवल कुचों का नृत्य और उनका अनुपम संचालन उर्वशी ही कर सकती थी । सुडौल वक्षों का विभिन्न प्रकार से नृत्य कराने की उसकी कला अद्भुत थी । संपूर्ण बदन स्थिर रखकर केवल कुचों का नृत्य अद्वितीय था । सब लोग वाह वाह कर उठे । अर्जुन ने लज्जावश अपना चेहरा नीचे कर लिया । 

अर्जुन को उर्वशी की ओर निहारते हुए इंद्र ने देख लिया था । इंद्र ने समझा कि अर्जुन के मन में उर्वशी को लेकर विशेष अनुराग पनप गया है । उर्वशी का कामोद्देपक नृत्य अर्जुन जैसे संयमी व्यक्ति को भी मथ गया है और उसे कामावेग समृद्ध कर गया है । इंद्र अर्जुन को अर्थपूर्ण नजरों से देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगे । नृत्य समाप्त हुआ तो सभी अप्सराऐं चली गईं । 

सभी अप्सराऐं एक कक्ष में एकत्रित होकर अपना "मेकअप" हटाने लगीं । इसी बीच वे आपस में वार्तालाप भी करती जा रही थी । घृताची बोली 
"अरी बहनों, तुमने उस नर श्रेष्ठ अर्जुन को देखा" ? 

इस प्रश्न पर समस्त अप्सराऐं एक साथ बोल पड़ीं "बहन, उसके विशाल लोचनों की धारा में हम तो ऐसे बह गयीं जैसे बाढ़ में कोई वृक्ष बह जाता है । बस, इसके सिवाय हमें कुछ और नजर ही नहीं आया । हम तो उसके तीखे नयनों के नशे में सुध बुध खो चुकीं थीं इसलिए उसे जी भरकर देख भी नहीं पाईं थीं । काश, हममें इतनी शक्ति होती कि हम उस देवों से भी बढकर दिखने वाले अर्जुन को भरपूर नजरों से देख पातीं" ? 

इतने में तिलोत्तमा बोली "मैंने तो उसे भरपूर नजरों से देखा भी और भोगा भी । पता नहीं इस जन्म में उस सिंहराज को कभी भोगने का अवसर प्राप्त हो या नहीं, इसलिए मैंने तो उसे कल्पना लोक में ही भोग लिया था । इससे मेरा जघन प्रदेश गीला भी हो गया है" । वह अपने बदन को पोंछते हुए बोली 

सभी अप्सराऐं झट से बोल पड़ी "काश एक बार यह मर्द शिरोमणि हमारे साथ समागम कर ले , बस हमारी समस्त इच्छाऐं पूर्ण हो जायें" । उन अप्सराओं की काम वेदना से वह हॉल गूंजने लगा । 

उर्वशी अब तक चुप चाप ही अपना मेकअप हटा रही थी । उसका तन तो यहां था मगर उसका मन तो अर्जुन के कदमों में ही था । वह न जाने कितनी बार मन ही मन अर्जुन के साथ "रमण" कर चुकी थी । उसके नथुनों से अब तक गर्म वायु प्रवाहित हो रही थी । मगर उसने कुटिलता पूर्वक अपने हाव भाव से अपने मन की स्थिति को सामने नहीं आने दिया था । 
वह कहने लगी "क्या है ऐसा उस सामान्य मनुष्य में जो तुम लोग उसके लिए इतनी अधीर हो रही हो ? स्त्रियोचित मर्यादा और लाज को भी तज दिया है तुमने ? अगर इतनी ही काम पिपासु हो तो किसी देवता की अंकशायनी बन जाओ । एक मनुष्य के साथ भोग करने से तो बेहतर है देवता के साथ भोग करना । ऐसा व्यवहार हम अप्सराओं को शोभा नहीं देता" । ऐसे कटु वचन बोलकर वह वहां से चलकर अपने कक्ष में आ गई । उसे भय लग रहा था कि कहीं उसका बदन जो अर्जुन के स्मरण करने मात्र से अभी तक कम्पित हो रहा था, उसकी पोल न खोलकर रख दे । अत: वहां से हटने में ही उसने अपनी भलाई समझी । 

अपने कक्ष में आकर वह अपने स्विमिंग पूल में कूद पड़ी । कामोत्तेजना से उसका संपूर्ण बदन जल रहा था । शीतल जल ने उसे थोड़ी राहत प्रदान की । वह घंटों तक जल क्रीड़ा करके अपने काम के आवेग को शांत करती रही । इतने में उसकी दासी उसके पास आई 
"सुभगे, आपको देवराज इंद्र याद कर रहे हैं" 

उर्वशी सोच में पड़ गई "देवराज इस समय क्यों याद कर रहे हैं ? कहीं उसके नृत्य से वे भी तो काम के आवेश में नहीं आ गये ? अगर ऐसा है तो ठीक ही है । इस तन को कुछ तो राहत मिलेगी । एक प्यासे तन को दूसरे प्यासे तन का सहारा तो मिलेगा । जब दो प्यासे तन मिलेंगे तो समुद्र सी तृप्ति हो सकेगी । अर्जुन न सही देवराज ही सही" । उसके होठों पर एक मुस्कान फिर से आ गई । 

वह पूर्णत: तैयार होकर इंद्र के सम्मुख उपस्थित हुई । उसे देखकर इंद्र बहुत प्रसन्न हुए । उसके रूप और यौवन का नाना भांति वर्णन करने लगे । इससे उर्वशी फूलकर कुप्पा हो गई । उसके उरोज जो पहले ही बहुत बड़े थे, इस प्रशंसा से और भी अधिक विशाल हो गए । मुख पर कांति कई गुना बढ गई । कुचों में तनाव और अधिक व्याप्त हो गया । शर्म से उसके गाल और अधिक लाल हो गये । तन पुलकायमान हो गया इससे उसकी चोली के बंद टूट गये । वह एक बार फिर से अनावृत जैसी हो गई । उसने लाज से अपने दोनों हाथ अपने उभारों पर रख लिये । 

"भद्रे, इस स्वर्ग लोक में तुमसे सुंदर स्त्री और कोई नहीं है । तुम्हें पाने की हर कोई अभिलाषा रखता है । तुम समस्त लोकों के साम्राज्य से भी बढकर हो । अगर कोई मुझसे कहे कि तुम क्या चाहते हो ? समस्त लोकों का राज्य या उर्वशी के साथ एक रात्रि का समागम । तो सुनो सुनयना, मैं सत्य कहता हूं कि मैं तुम्हारे साथ केवल एक रात के समागम के लिए त्रैलोक्य का राज्य छोड़ दूंगा । हे कामिनी, तुम्हारे सौन्दर्य का हर देवता , नाग, गंधर्व, मनुष्य सब दीवाना है । मैंने तुम्हें एक विशिष्ट मनोरथ से यहां बुलाया है । क्या वह मनोरथ सफल कर सकोगी" ? 

अपने निर्दोष रूप यौवन की प्रशंसा सुनकर उर्वशी गदगद हो गई और वह मन ही मन जान गई कि देवराज कामातुर होकर उससे प्रणय निवेदन करना चाहते हैं । स्पष्ट कहने में शायद संकोच कर रहे हैं , इसीलिए भूमिका बना रहे हैं । पर उन्हें क्या पता कि उनसे अधिक तो वह स्वय॔ कामातुर हो रही है । उसके लिए एक एक पल काटना भारी पड़ रहा है । देवराज उसके "अवयवों" से उसके मन की बात समझ क्यों नहीं लेते और आगे बढकर उसका आलिंगन क्यों नहीं कर लेते ? वह तो कब से "बिछने" के लिए तैयार खड़ी है ? 

उर्वशी को चुप देखकर देवराज बोले "सुमंगले  । खामोश रहकर मेरी चिंता मत बढाओ  । हां कहो । बोलो , मेरा मनोरथ पूर्ण करोगी" ? 

उर्वशी ने हां की मुद्रा में गर्दन हिला दी तो इंद्र खुश होकर बोल पड़े । 

क्रमश: 

श्री हरि 
6.4.23 


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5 Comments

KALPANA SINHA

03-Jul-2023 01:56 PM

good story

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Apr-2023 05:54 PM

🙏🙏🙏

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shahil khan

06-Apr-2023 10:00 PM

nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Apr-2023 05:54 PM

🙏🙏

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